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🌻अमृतवाणी🌻

*🌻आज की अमृतवाणी🌻* (ईश्वरीय न्याय) *ईश्वर पर न किसी की प्रशंसा का कोई असर पड़ता है और न निंदा का। पुजारी नित्य प्रशंसा के पुल बाँधते और नास्तिक हजारों गालियाँ सुनाते हैं। इनमें से किसी की भी बक-झक का उस पर कोई असर नहीं पड़ता । गिड़गिड़ाने, नाक रगड़ने पर भी चयन आयोग किसी को ऑफीसर नियुक्त नहीं करता। छात्रवृत्ति पाने के लिए नंबर लाने और प्रतिस्पर्द्धा जीतने से कम में किसी प्रकार भी काम नहीं चलता। ईश्वर की भी यही सुनिश्चित रीति-नीति है। उसकी प्रसन्नता भी एक केंद्रबिंदु पर केंद्रित है कि किसने उसके विश्व उद्यान को सुंदर, समुन्नत बनाने के लिए कितना अनुदान प्रस्तुत किया। उपासनात्मक कर्मकांड इसी एक सुनिश्चित व्यवस्था को जानने-मानने के लिए किए और अपनाए जाते हैं। यदि कर्मकांड लकीर भर पीटने की तरह पूरे किए जाएँ और परमात्मा के आदेश- अनुशासन की अवज्ञा की जाती रहे, तो समझना चाहिए कि यह मात्र बाल-क्रीड़ा, खेल-खिलवाड़ ही है। उतने भर से किसी का कुछ भला होने वाला है नहीं।* *(युग ऋषि पं.श्रीराम शर्मा आचार्य)* ****************************** *🌞आज की तिथि, पंचांग🌞* सृष्टि काल--- *०१अरब,९६ करोड,०८ लाख,५३

गृहस्थ जीवन में ईश्वर प्राप्ति

गृहस्थ जीवन में ईश्वर प्राप्ति  एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से पूछा कि “क्या गृहस्थ में रहकर भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है?”  मंत्री ने उत्तर दिया- हाँ, श्रीमान् ऐसा हो सकता है।  राजा ने पूछा कि यह किस प्रकार संभव है?  मंत्री ने उत्तर दिया कि इसका ठीक ठीक उत्तर एक महात्मा जी दे सकते हैं जो यहाँ से गोदावरी नदी के पास एक घने वन में रहते हैं। राजा अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए दूसरे दिन मंत्री को साथ लेकर उन महात्मा से मिलने चल दिया।  कुछ दूर चलकर मंत्री ने कहा- महाराज, ऐसा नियम है कि जो उन महात्मा से मिलने जाता है, वह रास्ते में चलते हुए कीड़े-मकोड़ो को बचाता चलता है। यदि एक भी कीड़ा पाँव से कुचल जाए तो महात्मा जी श्राप दे देते हैं। राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली और खूब ध्यानपूर्वक आगे की जमीन देख देखकर पैर रखने लगे। इस प्रकार चलते हुए वे महात्मा जी के पास जा पहुँचे। महात्मा ने दोनों को सत्कारपूर्वक बिठाया और राजा से पूछा कि आपने रास्ते में क्या-क्या देखा मुझे बताइए।  राजा ने कहा- भगवन् मैं तो आपके श्राप के डर से रास्ते के कीड़े-मकोड़ो को देखता आया हूँ। इसलिए मेरा ध्यान द

जीत लिया तमगा

जीत लिया तमगा  सातवीं के छात्र मृदुल को आजकल दिन-रात एक ही सपना दिखाई देता है और वह था कि उसने साइकल रेस जीत ली है। ऐसा नहीं था कि वो सिर्फ सपने ही देख रहा था। वो तो दिन-रात मेहनत भी कर रहा था और उन लोगों के पास भी निरंतर जाता रहता था, जो लोग पिछले वर्षों में साइकल रेस के चैंपियन बने थे। मृदुल रहता ही ऐसी कॉलोनी में था, जहां कोई न कोई अपने क्षेत्र का चैंपियन था कोई शतरंज में, कोई तैराकी में, कोई टेनिस में, कोई कैरम के खेल में। मृदुल को 4 वर्ष की उम्र से बढ़िया साइकल चलानी आती थी और वह अब 12 वर्ष का था। उसका मन कहता था कि यह एक काम ही शानदार है, जो वह अगर मन लगाकर करे तो सफलता मिल ही जाएगी। वैसे यह पहली बार नहीं था। मृदुल पिछले 3 वर्षों से साइकल रेस में हिस्सा ले रहा था, पर उसका हौसला अभी इतना मजबूत न हो सका था। लेकिन उसकी जीतने की प्रबल इच्छा उसे बार-बार अतीत की शर्मिंदगी या पराजय से बाहर लाती और खूब मेहनत करके फिर साइकल रेस में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करती। मृदुल ने अगले महीने होने वाली साइकल रेस के लिए अपना नाम पंजीयन करवा ही लिया। मृदुल अपनी पढ़ाई आदि के साथ पूरा जोर लगाकर जुट गय

मूवी रिव्यू: द केरल स्टोरी

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ऐक्टर: अदा शर्मा, योगिता बिहानी सोनिया बलानी, सिद्धि ईरानी, प्रणय पचौरी, प्रणव मिश्रा डायरेक्टर :   सुदीप्तो सेन   'द केरल स्टोरी' की कहानी लगातार चल रहे विवादों के बीच निर्देशक सुदीप्तो सेन की 'द केरल स्टोरी' सिनेमाघरों में शुक्रवार, 5 मई को रिलीज हो चुकी है। विवादों के चलते ही मेकर्स को फिल्म के ट्रेलर में भी बदलाव करना पड़ा। यों देखा जाए तो सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्म बनाना फिल्मकारों को हमेशा से आकर्षित करता आया है, मगर जब मेकर किसी सच्ची घटना को पर्दे पर उतारता है, तो उसकी जिम्मेदारी बढ़ जाती। काल्पनिक कहानियों में सिनेमैटिक लिबर्टी ली जा सकती है, मगर सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म में छोटी-सी अतार्किक बात भी अखरती है और नतीजतन उसके प्रभाव को कम कर देती है। फिल्म केरल में युवा हिंदू लड़कियों के कथित धर्मांतरण और इस्लाम की कट्टरता के इर्दगिर्द घूमती है। फिल्म में दावा किया गया है कि यह केरल की तीन युवा लड़कियों की सच्ची कहानियों पर आधारित है।   कहानी की शुरुआत होती है, जांच अफसरों से घिरी फातिमा उर्फ शालिनी उन्नीकृष्णन (अदा शर्मा) से, जो अपने भयावह और दर्दनाक अतीत की दास्

अन्धविश्वास

अन्धविश्वास  देखो न मम्मी कहाँ से ये कछुआ आ गया हमारे घर में, दोनों बच्चे उस कछुए को देख कर ख़ुशी से उछल पड़े, आयुषी बोली- “अरे मम्मी देखो ये कितना छोटा और प्यारा सा हैं, हम इसे पालतू बना लेते हैं,” यश दौड़ कर गया और एक जार ले आया, उस जार में पानी भर दिया, थोड़ी मिटटी डाल कर उसमे कछुए को डाल दिया, शालिनी और जय भी उस छोटे से कछुए को देख कर आश्चर्य चकित थी, पता नहीं ये छोटा सा कछुआ कहाँ से आ गया हमारे घर में, शालिनी और जय ने अभी नया-नया घर बनया था, गृहप्रवेश में आये रिश्तेदार भी अभी तक नहीं गये थे, सभी तरह-तरह की बाते करने लगे, कछुए का घर में आना लक्ष्मी का संकेत है, कछुआ घर में रखना चाहिए, इससे घर में लक्ष्मी आती है, हालाकिं शालिनी इन बातो पर विश्वास नहीं करती थीं लेकिन रिश्तेदारों की बातों से शालिनी को भी अन्धविश्वास ने घेर लिया था, अगले दस दिनों तक घर में मेहमानों का आना जाना लगा रहा, घर के साथ-साथ वह छोटा सा कछुआ भी आकर्षण का केन्र्द बना हुआ था, शालिनी  भी बहुत व्यस्त थी, लेकिन इतनी व्यस्तता में भी शालिनी उस कछुए को खाना देना नहीं भूलती, सुबह दोपहर शाम तीनों समय, जब भी शालिनी कछुए को खान

बोरिंग लाईफ से ही सकसेस लाईफ की शुरूआत होती है।॥॥

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हाय दोस्तो जैसे की आप लोग जानते है कि एक बोरिंग लाईफ में लोग अपने जीवन में हर चिज से परेशान हो जाता है ना ही उसे जिने में आनंद आता है और ना ही किसी काम को करने में मन लगता है सिर्फ और सिर्फ उसे अपने लाईफ को कब कहा कैसे खत्‍म किया जाए अैसा होना लाजमी है जब कोई व्यक्ति किसी चिज को पाने की चाहत ना रखता हो, इस लिए जिस दिन आपके मन में कुछ अैसा हो तो जान लो की आप के लाईफ में कुछ परिवर्तन होने के लिए आपको अैसा महोल दिया गया है क्योकि पूरे लाईफ में एैसा एक बार होता है जब आपका सही समय आने वाला बस उस टाईम को ध्यान दो और आगे बढ़ने की एक कोशिश जरूर करो एक एम जरूर बनाओं ताकी आपके लाईफ में चेंज आए और आपकी बोरिंग लाईफ हेप्पी लाईफ में परिवर्तन हो जाए। कोशिश का नाम है एक आखरी उम्मीद जिसे पाना हर ईसान को होता है बस सही समय का इंतिजार करना होता है। मय कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहा हॅूं। शायद आपको पसंद आएं अभी अंगडाई ‍है आगे और लड़ाई है। मिलते है कुछ नय अंदाज में………..

*बेटा से पहले बहु को समझना होगा*

01. प्रश्न :- बुढापे का सहारा कौन होता है और कैसे विस्तार में बताये।  उतर :- *बुढापे का सहारा बेटा नहीं-"बहु"* होती हैं जैसे कि :- लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है।इसलिये लोग अपने जीवन मे एक "बेटा" की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कटे। ये बात सच भी है *क्योंकि बेटा ही घर में बहु लाता है।* बहु के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे पर डाल देता है। और *फिर बहु बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी।*  जी हाँ मेरा तो यही मनाना है वो बहु ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर अपना जीवन अच्छे से व्यतीत करते हैं। *एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती है*।कौन कब और कैसी चाय पीते है, क्या खाना बनाना है, शाम में नाश्ता में क्या देना,रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है।अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाए तो पूरे मन या बेमन से बहु ही देखभाल करती है। अगर एक दिन के लिये बहु बीमार पड़ जाए या फिर कही चले जाएं, तो पूरे घर की धुरी हिल जाती है ।। परंतु यदि बेटा 15 दिवस की यात्रा पर भी चला जाये

*संत शिरोमणि रविदास जी महाराज से सिंकदर को भी मांगनी पड़ी थी माफी*

संत शिरोमणि रविदास जी महाराज को भारत वर्ष में विभिन्न प्रांतीय भाषाओं में उन्हें रोईदास, रैदास व रहदास आदि नामों से भी जाना जाता है। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। नौ वर्ष की नन्ही उम्र में ही परमात्मा की भक्ति का इतना गहरा रंग चढ गया कि उनके माता-पिता भी चिंतित हो उठे । उन्होंने उनका मन संसार की ओर आकृष्ट करने के लिए उनकी शादी करा दी और उन्हें बिना कुछ धन दिये ही परिवार से अलग कर दिया फिर भी रविदासजी अपने पथ से विचलित नहीं हुए । संत रविदास जी पड़ोस में ही अपने

जीवन परिचय संत शिरोमणि रविदास जी महाराज

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संत शिरोमणि रविदास जी महाराज का जन्म समवत 1433 ई. को माघ पूर्णिमा दिन रविवार को काशी बनारस के ग्राम सीरगोवर्धनपुर में हुआ था, जो काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के ठीक सामने हैं। इनके पिता श्री राघव दास जी था और माता श्रीमती कर्मा बाई इनके पुत्र विजय दास एवं पुत्री रविदासनी थी। संत शिरोमणि रविदास जी महाराज का जन्म उस समय हुआ था जिस समय छुआछूत का कहर बारिश की तरह बरस रही थी। उस समय एक दोहा प्रकाश मय हुआ था । *"चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पन्द्रहास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास।।"* संत शिरोमणि रविदास जी महाराज कहते है कि मानव जीवन बहुत अमूल्य हैं इसे बेअर्थ ना जाने दे जिसने प्रभु का स्मरण किया ओ इस माया रूपी संसार से मोक्ष की प्राप्ति कारत हैं। प्रभु का तात्पर्य यह है कि जिस का कोई आकार ना हो निराकार हो सिर्फ एक केंद्र बिंदु हैं। जिस का चीत एकाग्र हो ओ ही प्रभु की भक्ति कर सकता है। हमारे मन और मस्तिष्क में ही प्रभु का वास हैं इसे हम कैसे पहचाने इस की कल्पना कैसे करें इस बात को जानने की कोशिश करे और अन्तर ध्यान अर्थात अपने आत्म का ध्यान करें और अपने आपसे पूछे क
हम पूरे दूनिया के मेहर समाज के सर्वागीण विकास हेतु मार्गदर्शन के लिए संकल्पित हैं : मेहर समाज (छत्तीसगढ़)

जीवन मनमोल है इसका आनंद उठायें, किसी भी स्थिति में आपसी भाईचारा, प्रेम और सद्भावना के विपरित आचरण को अपने जीवन में शामिल न करें - श्री दिनेश सोनवानी