मूवी रिव्यू: द केरल स्टोरी
डायरेक्टर : सुदीप्तो सेन
'द केरल स्टोरी' की कहानी
लगातार चल रहे विवादों के बीच निर्देशक सुदीप्तो सेन की 'द केरल स्टोरी' सिनेमाघरों में शुक्रवार, 5 मई को रिलीज हो चुकी है। विवादों के चलते ही मेकर्स को फिल्म के ट्रेलर में भी बदलाव करना पड़ा। यों देखा जाए तो सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्म बनाना फिल्मकारों को हमेशा से आकर्षित करता आया है, मगर जब मेकर किसी सच्ची घटना को पर्दे पर उतारता है, तो उसकी जिम्मेदारी बढ़ जाती। काल्पनिक कहानियों में सिनेमैटिक लिबर्टी ली जा सकती है, मगर सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म में छोटी-सी अतार्किक बात भी अखरती है और नतीजतन उसके प्रभाव को कम कर देती है। फिल्म केरल में युवा हिंदू लड़कियों के कथित धर्मांतरण और इस्लाम की कट्टरता के इर्दगिर्द घूमती है। फिल्म में दावा किया गया है कि यह केरल की तीन युवा लड़कियों की सच्ची कहानियों पर आधारित है।
कहानी की शुरुआत होती है, जांच अफसरों से घिरी फातिमा उर्फ शालिनी उन्नीकृष्णन (अदा शर्मा) से, जो अपने भयावह और दर्दनाक अतीत की दास्तान बयान करते हुए कहती है, 'मैंने आईएसआईएस कब जॉइन किया, ये जानने के लिए ये जानना जरूरी है कि कैसे और क्यों जॉइन किया।' फिर शुरू होती है बैक स्टोरी, जहां चार छात्राएं केरल के कासरगोड में एक नर्सिंग स्कूल में एडमिशन लेती हैं, जिसमें शालिनी अपनी रूममेट्स गीतांजलि (सिद्धि इदनानी), निमाह (योगिता बिहानी) और आसिफा (सोनिया बलानी) के साथ एक रूम शेयर करते हुए गहरी दोस्त बन जाती हैं। शालिनी, गीतांजलि और निमाह आसिफा के खौफनाक इरादों से पूरी तरह नावाकिफ है।
असल में आसिफा के पास अपने रूममेट्स को अपने परिवार और धर्म से दूर ले जाकर और इस्लाम में परिवर्तित करने का एक गुप्त एजेंडा है। इसके लिए वो अपने दो नकली भाइयों का सहारा लेती है और ऐसा जाल बिछाती है कि लड़कियों को कट्टरपंथी बन जाएं। उनका ब्रेन वॉश करने के लिए उन्हें नशे की दवाइयां दी जाती हैं, परिवार के प्रति नफरत और धर्म को लेकर अविश्वास पैदा किया जाता है। इतना ही नहीं, शालिनी को अपने प्यार के जाल में फंसाने वाला रमीज उसे गर्भवती कर देता है। समाज के डर से शालिनी इस्लाम क़ुबूल कर लेती है, किसी अनजान मर्द से निकाह कर भारत छोड़कर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रास्ते सीरिया भाग निकलती है। आगे का सफर शालिनी के लिए और भी भयानक साबित होता है, यहां इंडिया में उसकी दोनों सहेलियों गीतांजलि और निमाह को भी नर्क से गुजरना पड़ता है।
फिल्म में हिंसात्मक और बलात्कार वाले दृश्य कमजोर दिल वालों को दहला सकते हैं। कई ऐसे डायलॉग्स भी हैं, जो विभिन्न समुदायों और विचारधारा के लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचा सकते हैं। फिल्म का संपादन थोड़ा और चुस्त हो सकता था। हालांकि प्रशांतनु मोहापात्रा की सिनेमटोग्राफी में केरल से लेकर अफगानिस्तान के संसार को बखूबी दिखाया गया है।
एक्टिंंग के मामले में अदा शर्मा ने शालिनी के रूप में जहां एक ओर अपनी मासूमियत बिखेरी, तो दूसरी तरफ फातिमा के रूप में डर, बेबसी, आक्रोश और पीड़ा को बखूबी चित्रित किया है। फिल्म में अदा का काम सराहनीय है। सहेलियों के रूप में योगिता बिहानी और सिद्धि इदनानी ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है, मगर उनके किरदारों में गहराई का अभाव नजर आता है।
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