गृहस्थ जीवन में ईश्वर प्राप्ति
गृहस्थ जीवन में ईश्वर प्राप्ति
एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से पूछा कि “क्या गृहस्थ में रहकर भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है?”
मंत्री ने उत्तर दिया- हाँ, श्रीमान् ऐसा हो सकता है।
राजा ने पूछा कि यह किस प्रकार संभव है?
मंत्री ने उत्तर दिया कि इसका ठीक ठीक उत्तर एक महात्मा जी दे सकते हैं जो यहाँ से गोदावरी नदी के पास एक घने वन में रहते हैं।
राजा अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए दूसरे दिन मंत्री को साथ लेकर उन महात्मा से मिलने चल दिया।
कुछ दूर चलकर मंत्री ने कहा- महाराज, ऐसा नियम है कि जो उन महात्मा से मिलने जाता है, वह रास्ते में चलते हुए कीड़े-मकोड़ो को बचाता चलता है। यदि एक भी कीड़ा पाँव से कुचल जाए तो महात्मा जी श्राप दे देते हैं। राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली और खूब ध्यानपूर्वक आगे की जमीन देख देखकर पैर रखने लगे। इस प्रकार चलते हुए वे महात्मा जी के पास जा पहुँचे।
महात्मा ने दोनों को सत्कारपूर्वक बिठाया और राजा से पूछा कि आपने रास्ते में क्या-क्या देखा मुझे बताइए।
राजा ने कहा- भगवन् मैं तो आपके श्राप के डर से रास्ते के कीड़े-मकोड़ो को देखता आया हूँ। इसलिए मेरा ध्यान दूसरी ओर गया ही नहीं, रास्ते के दृश्यों के बारे में मुझे कुछ भी मालूम नहीं है।
इस पर महात्मा ने हँसते हुए कहा- राजन् यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है ।
हे राजन सुनो जो गृहस्थ अपने घर के काम धंधों में उलझे हुए हैं, वो अपने स्वरूप को नहीं जानते, उनके लिए हज़ारों बातें कहने-सुनने एवं सोचने, करने की रहती हैं। उनकी सारी उम्र या तो परिवार प्रसंग आ फिर धन की चिंता या कुटुम्बियों के भरण पोषण में समाप्त हो जाती है। संसार में गृहस्थ व्यक्ति जिन्हें अपना अत्यंत घनिष्ट सम्बन्धी मानता है, वे
शरीर,
पुत्र,
स्त्री आदि कुछ नहीं हैं, असत हैं; परंतु सांसारिक मोहपाश में बँधा हुआ व्यक्ति रात दिन उनको मृत्यु का ग्रास होते हुए भी नहीं चेतता।
जिस प्रकार मेरे श्राप से डरते हुए तुम आये, कीड़ों को बचाते हुए चले,, उसी प्रकार ईश्वर के दण्ड विधान से डरना चाहिए दुष्कर्मों से बचते हुए चलना चाहिए।
जिस सावधानी से तुम मेरे पास आये हो, रास्ते में अनेक दृश्यों के होते हुए भी वे दिखाई न पड़े। उसी तरह से जीवन क्रम चलाओ तो गृहस्थ में रहते हुए भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो।
मनुष्य जन्म का यही लाभ है कि चाहे जैसे हो –
ज्ञान से,
भक्ति से
अथवा अपने धर्म की निष्ठा से
जीवन को ऐसा बना लिया जाए कि सुख में
दुःख में,
जन्म में या
मृत्यु में भगवान की स्मृति हमेशा बनी रहे ।
राजा ने ध्यानपूर्वक साधु की बातों को सुना और ठीक उत्तर पाकर संतोषपूर्वक लौट आये।
ईश्वर प्राप्ति हेतु गृहस्थ आश्रम को ही सच्चा मार्ग बतलाया है, क्योंकि जिसने भी ईश्वर को पाया वे गृहस्थ आश्रम में ही थे। मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार से रहित होना चाहिए।
कर सके तो लोगों पर तीन एहसान अवश्य कीजिए:
1.फायदा नही पहुंचा सकते तो नुकसान भी ना पहुंचाए,
2.खुशी नही दे सकते तो दुख भी ना पहुंचाए और
3.तारीफ नही कर सकते तो बुराई भी ना करें।
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