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बोरिंग लाईफ से ही सकसेस लाईफ की शुरूआत होती है।॥॥

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हाय दोस्तो जैसे की आप लोग जानते है कि एक बोरिंग लाईफ में लोग अपने जीवन में हर चिज से परेशान हो जाता है ना ही उसे जिने में आनंद आता है और ना ही किसी काम को करने में मन लगता है सिर्फ और सिर्फ उसे अपने लाईफ को कब कहा कैसे खत्‍म किया जाए अैसा होना लाजमी है जब कोई व्यक्ति किसी चिज को पाने की चाहत ना रखता हो, इस लिए जिस दिन आपके मन में कुछ अैसा हो तो जान लो की आप के लाईफ में कुछ परिवर्तन होने के लिए आपको अैसा महोल दिया गया है क्योकि पूरे लाईफ में एैसा एक बार होता है जब आपका सही समय आने वाला बस उस टाईम को ध्यान दो और आगे बढ़ने की एक कोशिश जरूर करो एक एम जरूर बनाओं ताकी आपके लाईफ में चेंज आए और आपकी बोरिंग लाईफ हेप्पी लाईफ में परिवर्तन हो जाए। कोशिश का नाम है एक आखरी उम्मीद जिसे पाना हर ईसान को होता है बस सही समय का इंतिजार करना होता है। मय कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहा हॅूं। शायद आपको पसंद आएं अभी अंगडाई ‍है आगे और लड़ाई है। मिलते है कुछ नय अंदाज में………..

*बेटा से पहले बहु को समझना होगा*

01. प्रश्न :- बुढापे का सहारा कौन होता है और कैसे विस्तार में बताये।  उतर :- *बुढापे का सहारा बेटा नहीं-"बहु"* होती हैं जैसे कि :- लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है।इसलिये लोग अपने जीवन मे एक "बेटा" की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कटे। ये बात सच भी है *क्योंकि बेटा ही घर में बहु लाता है।* बहु के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे पर डाल देता है। और *फिर बहु बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी।*  जी हाँ मेरा तो यही मनाना है वो बहु ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर अपना जीवन अच्छे से व्यतीत करते हैं। *एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती है*।कौन कब और कैसी चाय पीते है, क्या खाना बनाना है, शाम में नाश्ता में क्या देना,रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है।अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाए तो पूरे मन या बेमन से बहु ही देखभाल करती है। अगर एक दिन के लिये बहु बीमार पड़ जाए या फिर कही चले जाएं, तो पूरे घर की धुरी हिल जाती है ।। परंतु यदि बेटा 15 दिवस की यात्रा पर भी चला जाये ...

*संत शिरोमणि रविदास जी महाराज से सिंकदर को भी मांगनी पड़ी थी माफी*

संत शिरोमणि रविदास जी महाराज को भारत वर्ष में विभिन्न प्रांतीय भाषाओं में उन्हें रोईदास, रैदास व रहदास आदि नामों से भी जाना जाता है। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। नौ वर्ष की नन्ही उम्र में ही परमात्मा की भक्ति का इतना गहरा रंग चढ गया कि उनके माता-पिता भी चिंतित हो उठे । उन्होंने उनका मन संसार की ओर आकृष्ट करने के लिए उनकी शादी करा दी और उन्हें बिना कुछ धन दिये ही परिवार से अलग कर दिया फिर भी रविदासजी अपने पथ से विचलित नहीं हुए । संत रविदास जी पड़ोस में ही अपने ...

जीवन परिचय संत शिरोमणि रविदास जी महाराज

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संत शिरोमणि रविदास जी महाराज का जन्म समवत 1433 ई. को माघ पूर्णिमा दिन रविवार को काशी बनारस के ग्राम सीरगोवर्धनपुर में हुआ था, जो काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के ठीक सामने हैं। इनके पिता श्री राघव दास जी था और माता श्रीमती कर्मा बाई इनके पुत्र विजय दास एवं पुत्री रविदासनी थी। संत शिरोमणि रविदास जी महाराज का जन्म उस समय हुआ था जिस समय छुआछूत का कहर बारिश की तरह बरस रही थी। उस समय एक दोहा प्रकाश मय हुआ था । *"चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पन्द्रहास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास।।"* संत शिरोमणि रविदास जी महाराज कहते है कि मानव जीवन बहुत अमूल्य हैं इसे बेअर्थ ना जाने दे जिसने प्रभु का स्मरण किया ओ इस माया रूपी संसार से मोक्ष की प्राप्ति कारत हैं। प्रभु का तात्पर्य यह है कि जिस का कोई आकार ना हो निराकार हो सिर्फ एक केंद्र बिंदु हैं। जिस का चीत एकाग्र हो ओ ही प्रभु की भक्ति कर सकता है। हमारे मन और मस्तिष्क में ही प्रभु का वास हैं इसे हम कैसे पहचाने इस की कल्पना कैसे करें इस बात को जानने की कोशिश करे और अन्तर ध्यान अर्थात अपने आत्म का ध्यान करें और अपने आपसे पूछे क...
हम पूरे दूनिया के मेहर समाज के सर्वागीण विकास हेतु मार्गदर्शन के लिए संकल्पित हैं : मेहर समाज (छत्तीसगढ़)

जीवन मनमोल है इसका आनंद उठायें, किसी भी स्थिति में आपसी भाईचारा, प्रेम और सद्भावना के विपरित आचरण को अपने जीवन में शामिल न करें - श्री दिनेश सोनवानी