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*संत शिरोमणि रविदास जी महाराज से सिंकदर को भी मांगनी पड़ी थी माफी*

संत शिरोमणि रविदास जी महाराज को भारत वर्ष में विभिन्न प्रांतीय भाषाओं में उन्हें रोईदास, रैदास व रहदास आदि नामों से भी जाना जाता है। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। नौ वर्ष की नन्ही उम्र में ही परमात्मा की भक्ति का इतना गहरा रंग चढ गया कि उनके माता-पिता भी चिंतित हो उठे । उन्होंने उनका मन संसार की ओर आकृष्ट करने के लिए उनकी शादी करा दी और उन्हें बिना कुछ धन दिये ही परिवार से अलग कर दिया फिर भी रविदासजी अपने पथ से विचलित नहीं हुए । संत रविदास जी पड़ोस में ही अपने ...

जीवन परिचय संत शिरोमणि रविदास जी महाराज

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संत शिरोमणि रविदास जी महाराज का जन्म समवत 1433 ई. को माघ पूर्णिमा दिन रविवार को काशी बनारस के ग्राम सीरगोवर्धनपुर में हुआ था, जो काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के ठीक सामने हैं। इनके पिता श्री राघव दास जी था और माता श्रीमती कर्मा बाई इनके पुत्र विजय दास एवं पुत्री रविदासनी थी। संत शिरोमणि रविदास जी महाराज का जन्म उस समय हुआ था जिस समय छुआछूत का कहर बारिश की तरह बरस रही थी। उस समय एक दोहा प्रकाश मय हुआ था । *"चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पन्द्रहास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास।।"* संत शिरोमणि रविदास जी महाराज कहते है कि मानव जीवन बहुत अमूल्य हैं इसे बेअर्थ ना जाने दे जिसने प्रभु का स्मरण किया ओ इस माया रूपी संसार से मोक्ष की प्राप्ति कारत हैं। प्रभु का तात्पर्य यह है कि जिस का कोई आकार ना हो निराकार हो सिर्फ एक केंद्र बिंदु हैं। जिस का चीत एकाग्र हो ओ ही प्रभु की भक्ति कर सकता है। हमारे मन और मस्तिष्क में ही प्रभु का वास हैं इसे हम कैसे पहचाने इस की कल्पना कैसे करें इस बात को जानने की कोशिश करे और अन्तर ध्यान अर्थात अपने आत्म का ध्यान करें और अपने आपसे पूछे क...
हम पूरे दूनिया के मेहर समाज के सर्वागीण विकास हेतु मार्गदर्शन के लिए संकल्पित हैं : मेहर समाज (छत्तीसगढ़)

जीवन मनमोल है इसका आनंद उठायें, किसी भी स्थिति में आपसी भाईचारा, प्रेम और सद्भावना के विपरित आचरण को अपने जीवन में शामिल न करें - श्री दिनेश सोनवानी