जीत लिया तमगा
जीत लिया तमगा सातवीं के छात्र मृदुल को आजकल दिन-रात एक ही सपना दिखाई देता है और वह था कि उसने साइकल रेस जीत ली है। ऐसा नहीं था कि वो सिर्फ सपने ही देख रहा था। वो तो दिन-रात मेहनत भी कर रहा था और उन लोगों के पास भी निरंतर जाता रहता था, जो लोग पिछले वर्षों में साइकल रेस के चैंपियन बने थे। मृदुल रहता ही ऐसी कॉलोनी में था, जहां कोई न कोई अपने क्षेत्र का चैंपियन था कोई शतरंज में, कोई तैराकी में, कोई टेनिस में, कोई कैरम के खेल में। मृदुल को 4 वर्ष की उम्र से बढ़िया साइकल चलानी आती थी और वह अब 12 वर्ष का था। उसका मन कहता था कि यह एक काम ही शानदार है, जो वह अगर मन लगाकर करे तो सफलता मिल ही जाएगी। वैसे यह पहली बार नहीं था। मृदुल पिछले 3 वर्षों से साइकल रेस में हिस्सा ले रहा था, पर उसका हौसला अभी इतना मजबूत न हो सका था। लेकिन उसकी जीतने की प्रबल इच्छा उसे बार-बार अतीत की शर्मिंदगी या पराजय से बाहर लाती और खूब मेहनत करके फिर साइकल रेस में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करती। मृदुल ने अगले महीने होने वाली साइकल रेस के लिए अपना नाम पंजीयन करवा ही लिया। मृदुल अपनी पढ़ाई आदि के साथ पूरा जोर लगाकर जु...